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मेरी रचनात्मक यात्रा

इंदु का रचनात्मक कार्य

1988 में मेरी नियुक्ति भवानीपुर एजुकेशन सोसायटी कॉलेज में पार्ट टाइम लेक्चरर के रूप में  हुई। आठ वर्ष के पश्चात सेठ आनन्दराम जयपुरिया कॉलेज में पूर्णकालिक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति हुई। इसके साथ-साथ प्रेसीडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में भी गेस्ट लेक्चरर के रूप में भी कार्य किया और मेरे सुपरविजन में एम फिल एवं पीएचडी भी संपन्न हुई 1985 से रचना कर्म समानान्तर चलता रहा है तथा सक्रियता सदैव बनी रहेगी।

मेरे परिरक्षक:

श्री नरेन्द्र अग्रवाल
श्री सुरेन्द्र अग्रवाल

ओ मेरे परिरक्षक 

जिंदगी के दुर्बल क्षणों में 

बरगद की छांव सदृश 

और कौन हो सकता है

प्रार्थना के पहले शब्द की तरह पवित्र 

जिसने एक भी वादा नहीं किया 

और निभाते चले गए सारे

वर्तमान समाचार

 

2 फरवरी 2025 वर्ल्ड बुक फेयर में मेरी पुस्तक चेतना के स्त्रोत भाग १और भाग २ प्रकाशित हो चुकी है।न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन के डायरेक्टर श्री मुकेश शर्मा जी को पुस्तक प्रकाशन हेतु हृदय से आभार।

मेरी प्रेरक शक्तियाँ

फिलॉसफी

समाज में रहते हुए मुझे जो अनुभव मिलता है, उससे वह अपने आप ही अंदर तैयार हो जाता है, यानी ली गई चीज एक रूप में सामने आती है। यह सच है कि मैं उसे बाहर लाने का माध्यम हूं। वह अंदर कैसे बनता है, कैसे आकार लेता है, उसका रूप बनाने के लिए क्या-क्या चीजें मिलाई जाती हैं। मुझे नहीं पता।

मेरे महत्वपूर्ण कार्य

कविता संग्रह: विश्वास रच रहा है मुझे : धूप में नहाई देहगंध आलोचना : छायावादोत्तर हिन्दी काव्य में परंपरा और प्रयोग : चेतना के स्त्रोत भाग १ : चेतना के स्त्रोत भाग २

मेरे प्रेरणा स्रोत

मेरे पिता: श्री माखन लाल जोशी
मेरी माता: श्रीमती शांति देवी जोशी
मेरी धरती, मेरा आकाश। उनका प्यार आज भी मुझे कोमल स्पर्श देता है। आप मेरे भीतर ऊर्जा का स्रोत हैं। मेरी हर सांस, हर सुबह आप दोनों के पवित्र चरणों को समर्पित है।

विश्रांति के स्वर्णिम पलों का संसार

अंशुल, श्रेया और शिवांश तिवारी ( परिवार)

नये क्षितिज की तलाश में, इन्दु के रचनाकर्म की संचयिका शैक्षिक जगत के अनुभवों की तस्वीरें

शिक्षक के प्रति छात्रों का नजरिया

"डॉ. इंदु जोशी मैम ने हमेशा कक्षा को एक पवित्र स्थान माना है। जहाँ वे ज्ञान की भूख जगाती हैं और छात्रों को उनकी जीवन यात्रा के लिए सही रास्ता भी सुझाती हैं।"
डॉ फातिमा कनीज़
एस.ए.सी.टी.
"मैडम ने यह कथन सिद्ध कर दिया है कि एक शिक्षक जीवन भर विद्यार्थी रहता है। वे स्वयं को साहित्य की विद्यार्थी मानती हैं। यह पंक्ति कोई साधारण व्यक्ति नहीं कह सकता। यह कथन हृदय में आदर और भक्ति की भावना जागृत करता है।"
सूरज कुमार गुप्ता
अध्यापक
"आपने रोजमर्रा की घटनाओं से जुड़े अनुभवों को साझा किया और जीवन की सच्चाइयों को उजागर किया, जिससे हमें एक नई दिशा मिली। मुझे पूरा विश्वास है कि जीवन की राह में एक ऐसा क्षण अवश्य आएगा, जब हम इन बातों का अर्थ समझ पाएंगे।"
सागर साव
एसएसबी

पुस्तक विमोचन एवं पुरस्कार समारोह की कुछ झलकियाँ

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धूप में नहाई देह गंध

विश्वास रच रहा है मुझे